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Home » अन्य » दिवाली की कविताएं और शुभ दीपावली शायरी यहां से प्राप्त करें

दिवाली की कविताएं और शुभ दीपावली शायरी यहां से प्राप्त करें

by Soumya Priyam
November 10, 2020
in अन्य
Reading Time: 4min read
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दिवाली यानी रौशनी का त्यौहार है। दिवाली त्यौहार अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है। ऐसा माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्षों का वनवास पूरा करके और लंका के राजा रावण का वध करके अयोध्या वापस लौटे थे। अयोध्या लौटने पर अयोध्या वासियों ने घी के दीपक जला कर उनका स्वागत किया था और खुशियां मनाई थीं। उस समय से इस पर्व की शुरुआत हुई थी। दिवाली का त्यौहार हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है। केवल भारत ही नहीं नेपाल, श्रीलंका, सूरीनाम, मारीशस, मलेशिया, त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे कई देशों में दिवाली का महत्व है। नेपालियों के लिए दिवाली का त्यौहार बहुत ही ख़ास है। दिवाली के दिन से ही नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है।

यह भी पढ़ें : बिना पटाखों के कैसे मनाएं दिवाली जाने यहां से।

दिवाली केवल हिन्दुओं का ही त्यौहार नहीं है। इसे सिख और जैन धर्म के लोग भी बहुत धूम-धाम से मानते हैं। जैन धर्म को मानने वाले लोगों के अनुसार दिवाली के दिन उनके चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। वहीं सिखों के लिए दिवाली इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन अमृतसर में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था।

दीपावली पर सभी अपने घरों, मदिरों, दफ्तरों और दुकानों को दीप से सजाते हैं। इस दिन लक्ष्मी और गणेश की पूजा की जाती है। केवल बड़े ही नहीं बच्चों को भी दिवाली का इंतजार रहता है। इस दिन बच्चे कई प्रकार के पटाखे जलाते हैं।

यह भी पढ़ें : दिवाली पूजा का मुहूर्त यहां से जाने।

ये तो रही दिवाली क्यों मानते हैं और दिवाली का महत्व। अब हम आपको बताने जा रहे हैं दिवाली पर छोटी कविता और कुछ शुभ दीपावली शायरी। दीपावली की कविताएं और हैप्पी दिवाली शायरी निम्न प्रकार हैं।

यह भी पढ़ें : दिवाली पर निबंध यहां से पढ़ें। 

दिवाली की कविताएं

पहली कविता

आई दिवाली, आई दिवाली
खुशियों को संग लाई दिवाली
बच्चे आए बड़े भी आए
सबने सुंदर दीप जलाए
दीपों से जगमग संसार
एक-दूजे से बढ़ता प्यार।

दूसरी कविता

दिवाली त्योहार दीप का, मिलकर दीप जलाएंगे।
सजा रंगोली से आंगन को, सबका मन हर्षाएंगे।
बम-पटाखे भी फोड़ेंगे, खूब मिठाई खाएंगे।
दिवाली त्योहार मिलन का, घर-घर मिलने जाएंगे।

तीसरी कविता

मन से मन का दीप जलाओ,
जगमग-जगमग दि‍वाली मनाओ,
धनियों के घर बंदनवार सजती,
निर्धन के घर लक्ष्मी न ठहरती,
मन से मन का दीप जलाओ,
घृणा-द्वेष को मिल दूर भगाओ,
घर-घर जगमग दीप जलते,
नफरत के तम फिर भी न छंटते,
जगमग-जगमग मनती दिवाली,
गरीबों की दिखती है चौखट खाली,
खूब धूम धड़काके पटाखे चटखते,
आकाश में जा ऊपर राकेट फूटते,
काहे की कैसी मन पाए दिवाली,
अंटी हो जिसकी पैसे से खाली,
गरीब की कैसे मनेगी दीवाली,
खाने को जब हो कवल रोटी खाली,
दीप अपनी बोली खुद लगाते,
गरीबी से हमेशा दूर भाग जाते,
अमीरों की दहलीज सजाते,
फिर कैसे मना पाए गरीब दि‍वाली,
दीपक भी जा बैठे हैं बहुमंजिलों पर,
वहीं झिलमिलाती हैं रोशनियां,
पटाखे पहचानने लगे हैं धनवानों को,
वही फूटा करती आतिशबाजियां,
यदि एक निर्धन का भर दे जो पेट,
सबसे अच्छी मनती उसकी दि‍वाली,
हजारों दीप जगमगा जाएंगे जग में,
भूखे नंगों को यदि रोटी वस्त्र मिलेंगे,
दुआओं से सारे जहां को महकाएंगे,
आत्मा को नव आलोक से भर देगें,
फुटपाथों पर पड़े रोज ही सड़ते हैं,
सजाते जिंदगी की वलियां रोज है,
कौन-सा दीप हो जाए गुम न पता,
दिन होने पर सोच विवश हो जाते।

चौथी कविता

आओ मिलकर दीप जलाएं
अँधेरा धरा से दूर भगाएं
रह न जाय अँधेरा कहीं घर का कोई सूना कोना
सदा ऐसा कोई दीप जलाते रहना
हर घर -आँगन में रंगोली सजाएं
आओ मिलकर दीप जलाएं।
हर दिन जीते अपनों के लिए
कभी दूसरों के लिए भी जी कर देखें
हर दिन अपने लिए रोशनी तलाशें
एक दिन दीप सा रोशन होकर देखें
दीप सा हरदम उजियारा फैलाएं
आओ मिलकर दीप जलाएं।
भेदभाव, ऊँच-नीच की दीवार ढहाकर
आपस में सब मिलजुल पग बढायें
पर सेवा का संकल्प लेकर मन में
जहाँ से नफरत की दीवार ढहायें
सर्वहित संकल्प का थाल सजाएँ
आओ मिलकर दीप जलाएं
अँधेरा धरा से दूर भगाएं।

पांचवीं कविता

ज्योति-पर्व की इस बेला में
आलोकित है मन का आँगन।
खुशियों का संसार पुलकता
दीपों की मीठी बातों से
पग-पग सुमन लुटाते सौरभ
स्नेह भरे कोमल हाथों से
दो अस्फुट बोलों से गूंजे
अधरों का अभिमंत्रित गुंजन।
फुलझडियों-सा क्षण-भंगुर है
जीवन इससे रास रचाए
वायु प्रकम्पित लौ की आभा
हर दीये की आस जगाए
गंध-सिक्त परिवेश हमारा
साझीदार हुआ जब चंदन।
शाम खड़ी है नदी किनारे
चिड़िया-सी मुस्काती, गाती
दीपकाल में आई दुलहन
कुछ सकुचाती, कुछ शरमाती
तन में सिहरन, मन में पुलकन
झिलमिल दीपों के क्षण पावन।
मेरी पलकों पर आ बैठा
उजियारे का स्वप्न सुहाना
दो मोती ढुलके गालों पर
याद किया जब प्यार पुराना
तुम्हें समर्पित दीपमालिका
श्रंगारित ज्योतिर्मय तन-मन।

छठी कविता

होती थी यह वर्षों पहले
जब दिवाली में जलते थे दिये
पर अब चाहे हो जैसे
दिवाली में जलते हैं पैसे
छोड़ते हैं बम-पटाखे
और छोड़ते हैं रॉकेट
फैलाते है प्रदुषण
बढ़ाते हैं बीमारी
चाहे हो जैसे
पर दिवाली में जलते हैं पैसे
दिवाली मैं दिये अब जलते नहीं
दिये के स्थान पर है अब मोमबत्ती
मोमबत्ती का स्थान भी ले लिया अब बिजली
बिना बिजली के नहीं होता अब दिवाली
पर आपस में ख़ुशी बाँटने के जगह
खेलकर जुआ करते हैं पैसे की बर्बादी
चाहे हो जैसे
पर दिवाली में जलते हैं पैसे
दिवाली में जलते हैं पैसे।

सातवीं कविता

दिवाली देखो कैसी रौनक लायी
दीपो की छठा देखो फ़िर निखर आई
वैर भाव भूल कर समानता का पैगाम लायी
आतिशबाजी मिठाई के संग खुशियों की सौगात लायी
बच्चों की आँखों देखो कैसे खिल गई
जवानों की हर अरमान पूरी हो गई
बड़े बूढों की जैसे जिंदगी सफल हो गई
दिवाली के इंतजार की वेला ख़त्म हो गई
दीपो की पंक्ति धारा को शोभित करती हैं
तारें जैसे नभ को सुशोभित करती हैं
ये रंगीला पर्व कितनी सुंदर लगती है
उत्साह की ये घड़ी मन में तरोताजा रहती है
दिलों दिमाग में हमेशा छाई रहती है
सुसज्जित वातावरण काफी आकर्षक लगती है
दिवाली बहुत सुहावनी लगती है
दिवाली कैसी मनोरम लगती है
दिवाली बड़ी लुभावनी लगती है
दिवाली कितनी खूबसूरत लगती है।

आठवीं कविता

दीपावली नाम है प्रकाश का
रौशनी का खुशी का उल्लास का
दीपावली पर्व है उमंग का प्यार का
दीपावली नाम है उपहार का
दीवाली पर हम खुशियाँ मनाते हैं
दीप जलाते नाचते गाते हैं
पर प्रतीकों को भूल जाते हैं ?
दीप जला कर अन्धकार भगाते हैं
किन्तु दिलों में –
नफरत की दीवार बनाते है ?
मिटाना ही है तो –
मन का अन्धकार मिटाओ
जलाना ही है तो –
नफ़रत की दीवार जलाओ
बनाना ही है तो –
किसी का जीवन बनाओ
छुड़ाने ही हैं तो –
खुशियों की फुलझड़ियाँ छुड़ाओ
प्रेम सौहार्द और ममता की
मिठाइयाँ बनाओ ।
यदि इतना भर कर सको आलि
तो खुलकर मनाओ दीवाली।

नौवीं कविता

टिमटिम टिमटिम करते जो तारे
गुम हो गए आज हैं सारे
जगमग जगमग दीप जले हैं
प्रकाश पर्व घर आँगन सारे
बच्चे सभी खुशियों से चहकें
घर में दीवाली आज हमारे
मिठाई और खील बताशे
खूब हैं बांटे ,पास हमारे
टिमटिम करती है रोशन सी कतारें
अंधिआरा काटें फिर भी न हारें
धूम धाम है पटाखों की बहुत
शोर बहुत है, फिर भी स्वीकारें
पावन पर्व आज है अपना
पूजा करें पण प्राण सवारें।

दसवीं कविता

दीपों का त्योहार दीवाली।
खुशियों का त्योहार दीवाली।
वनवास पूरा कर आये श्रीराम।
अयोध्या के मन भाये श्रीराम।
घर-घर सजे , सजे हैं आँगन।
जलते पटाखे, फ़ुलझड़ियाँ बम।
लक्ष्मी गणेश का पूजन करें लोग।
लड्डुओं का लगता है भोग।
पहनें नये कपड़े, खिलाते है मिठाई।
देखो देखो दीपावली आई।

दिवाली कविताएं  के बाद देखते हैं दिवाली शायरी

हैप्पी दिवाली शायरी

पहली शायरी

लक्ष्मी जी विराजें आपके द्वार
जीवन में आयें खुशियाँ आपार
दिवाली की शुभकामनाएं हमारी करें स्वीकार।

दूसरी शायरी

पटाखों फुलझड़ियों के साथ
मस्ती से भरी हो दिवाली की रात
प्यार भरे हो दिन ये सारे
खुशियां रहें सदा साथ तुम्हारे।

तीसरी शायरी

दीयो की रौशनी से झिलमिलाता आँगन हो,
ऐसे आये झूम के यह दिवाली,
हर तरह खुशियों का मोसम हो।

चौथी शायरी

तमाम जहाँ जगमगाया
फिर से त्यौहार रौशनी का आया
कोई तुम्हे हमसे पहले ना देते बधाइयाँ
इसलिए ये पैगाम ए मुबारक सबसे पहले भिजवाया।

पांचवी शायरी

दीप जलते रहे, मन से मन मिलते रहें
गिले सिकबे सारे दिल से निकलते रहें
सारे विश्व में सुख शांति की प्रभात ले आये
ये दीपों का त्यौहार ख़ुशी की सोगात ले आये
दिवाली की ढेरों शुभकामनायें।

छठी शायरी

दीपावली की लाइट,
करे सबको डिलाइट,
पकड़ो मस्ती की फ्लाइट,
और धूम मचाओ आल नाईट
शुभ दीपावली

प्रमुख कवियों की कवितायेँ

दीपमाला में मुसर्रत की खनक शामिल है
दीप की लौ में खिले गुल की चमक शामिल है
जश्न में डूबी बहारों का ये तोहफ़ा शाहिद
जगमगाहट में भी फूलों की महक शामिल है
-शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ
-अटल बिहारी वाजपेयी

जलती बाती मुक्त कहाती
दाह बना कब किसको बंधन
रात अभी आधी बाकी है
मत बुझना मेरे दीपक मन
-रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’

उजियारा कर देने वाली
मुस्कानों से भी परिचित हूं,
पर मैंने तम की बाहों में अपना साथी पहचाना है
मैं दीपक हूँ, मेरा जलना ही तो मेरा मुस्काना है।
-हरिवंशराय बच्चन

जलती बाती मुक्त कहाती
दाह बना कब किसको बंधन
रात अभी आधी बाकी है
मत बुझना मेरे दीपक मन
-रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’

आज दिन दिवाली का आया
दीपों की सुनहरी कतार सजेगी,
आज सभी के घर दीपावली मनेगी।
– नरेंद्र वर्मा

निबंध

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