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Home » तैयारी » भारत के प्रमुख आंदोलन (Important Movement of India)

भारत के प्रमुख आंदोलन (Important Movement of India)

by Akshat Patel
March 15, 2021
in तैयारी
Reading Time: 2min read
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ब्रिटिशों के साथ वर्षों की गुलामी सहन करने के बाद 15 अगस्त 1947 को हमारा देश गुलामी की बेड़ियों को तोड़ आज़ाद हुआ। इस आज़ादी को पाने के लिए हमारे देश के क्रांतिकारियों ने बहुत प्रयास किये। आजादी से पहले भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान तीनों देश मिला कर एक देश सिर्फ भारत थे। उस समय के तत्कालीन भारत में समय के साथ जगह-जगह आंदोलन किये गए। कुछ आंदोलनों में देश के अमर क्रांतिकारियों में अपने प्राणों की आहुति भी दी जिसका परिणाम आज का हमारा आज़ाद भारत है। उन आंदोलन और आंदोलनकारियों के बिना ऐसे आज़ाद देश की कल्पना करना भी अकल्पनीय है। आज के हमारे इस आर्टिकल में देश में हुए प्रमुख आंदोलन की हम चर्चा करने वाले हैं। ये आंदोलन न सिर्फ हमारे इतिहास का हिस्सा हैं बल्कि आज के समय में होने वाली महत्वपूर्ण परीक्षाओं में पूछे जाने वाले प्रश्नों का भी महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे उम्मीदवार जो भी किसी कॉम्पिटेटिव एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं उनके लिए यह आर्टिकल बहुत ही उपयोगी साबित हो सकता है।

भारत के प्रमुख आंदोलन (Important Movement of India)

भारत के स्वर्णिम इतिहास को देखते हुए समय-समय पर कोई न कोई बाह्य शक्ति भारत पर आक्रमण करती रही है लेकिन मुगलों को ब्रिटिशों को छोड़कर भारत पर राज करने का मौका किसी अन्य को नहीं मिला। पूरे विश्व में सोने की चिड़िया के नाम से जाना जाने वाला भारत अपने आप ने बहुत सारे दर्द छुपाये हुए हैं। जब-जब इस पर बाह्य आक्रमणकारियों ने राज किया है तो उनसे खुद को मुक्त कराने के लिए भारत के अंदर ही बहुत सारे छोटे-बड़े युद्ध या आंदोलन हुए हैं जिनमे बहुतों ने अपने प्राणों का बलिदान किया है। आज हम नीचे ऐसे ही कुछ प्रमुख आंदोलन के बारे में बताने जा रहे हैं।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन् 1857 का विद्रोह

यह भारत का ब्रिटिश के विरुद्ध पहला सशस्त्र विद्रोह था। 10 मई 1857 की संध्या में मेरठ की छावनी से उठी यह चिंगारी दो वर्ष तक देश के विभिन्न कोनों-कोनों तक पहुँच गयी थी।

नील विद्रोह

सन् 1859 से 1860 ई. तक नील किसान और अंग्रेज़ों के मध्य पहला संगठित आंदोलन चलाया गया जिसे नील आंदोलन के नाम से जाना जाता है। पहले बिहार और बंगाल में बहुतायत नील की खेती की जाती थी जिससे अंग्रेज बनिये खूब धन कमाते थे और वे संथाल मजदूरों का भरपूर शोषण करते थे। जिसके कारण शोषित मजदूरों ने विद्रोह कर दिया। जिसमे अंगेज़ों की कई कोठियाँ जला दी गयी, अंग्रेज़ों को मार दिया गया था। जिसके फलस्वरूप शोषितों का शोषण बंद हो गया।

कूका विद्रोह

सिख संप्रदाय के नामधारी कूके लोगों के सशस्त्र विद्रोह को ‘कूका विद्रोह’ के नाम से जाता है। सन् 1857 ई. गुरु राम सिंहजी के नेतृत्व में कूका विद्रोह हुआ। कूका के लोगों ने पूरे पंजाब को बीस-बीस जिलों में विभाजित किया और अपनी समानांतर सरकार बनाई। कुके वीर की संख्या सात लाख से ऊपर थी। अधूरी तैयारी में विद्रोह भड़क उठा और इसीलिए इसे दबा दिया गया।

वासुदेव बलवंत फड़के के मुक्ति प्रयास

सन् 1875 से 1879 में महाराष्ट्र वासुदेव बलवन्त फड़के ने रामोशी, नाइक, धनगर और भील जातियों को संगठित करके उनकी एक सुसज्जित सेना बनायी और अंग्रेज़ों के विरुद्ध कई सफल लड़ाईयां लड़ी। इस सेना अंग्रेज़ों की नाक में दम कर रखा था।

बंग-भंग आंदोलन

बंगाल में स्वदेशी आंदोलन पहले से ही चल रहा था। इसके तहत विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग को प्रोत्साहित किया जा रहा था। इसी तरह, सन् 1905 में भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल प्रांत के विभाजन की घोषणा की। इस घोषणा ने पूरे बंगाल को उत्तेजित कर दिया और विश्वास क्रांतिकारी समितियाँ सक्रिय हो गईं। बम और पिस्तौल का इस्तेमाल अत्याचारी अंग्रेजों के खिलाफ किया जाने लगा। यह आंदोलन न केवल बंगाल तक सीमित हो गया, बल्कि पूरे भारत की स्वतंत्रता के लिए एक आंदोलन बन गया।

जालियाँ वाला बाग़ कांड

13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर के जालियाँ वाला बाग़ में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने बाग़ को चारों ओर से घेर तक सैकड़ों आदमी, औरतों और बच्चों की निहत्थी भीड़ पर गोली चला दी थी और जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया जिसके फलस्वरूप देश में अत्यधिक रोष उत्पन्न हो गया।

असहयोग आंदोलन

असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव 4 सितंबर 1920 को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पारित किया गया था। जो लोग भारत से उपनिवेशवाद को समाप्त करना चाहते थे, उनसे अनुरोध किया गया था कि वे स्कूलों, कॉलेजों और अदालतों में न जाएं। संक्षेप में, सभी को अंग्रेजी सरकार के साथ सभी स्वैच्छिक संबंधों को छोड़ने के लिए कहा गया था। गांधीजी ने कहा कि यदि असहयोग का ठीक से पालन किया जाए, तो भारत एक वर्ष के भीतर स्वराज हासिल कर लेगा।

चौरी चौरा कांड

चौरी चौरा कांड ब्रिटिश भारत के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में 4 फरवरी 1922 को हुआ था, जब असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह पुलिस के साथ भिड़ गया था। जवाबी कार्रवाई में, प्रदर्शनकारियों ने हमला किया और एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी, जिससे उसमे सभी रहने वाले सभी कब्जाधारियों की मौत हो गई। घटना के कारण तीन नागरिक और 22 पुलिसकर्मी मारे गए। महात्मा गांधी, जो हिंसा के सख्त खिलाफ थे, ने इस घटना के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में 12 फरवरी 1922 को राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आंदोलन को रोक दिया।

ख़िलाफ़त आंदोलन

मार्च 1919 में बॉम्बे में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया था। मोहम्मद अली और शौकत अली भाइयों के साथ कई मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त सार्वजनिक कार्रवाई की संभावना तलाशने के लिए महात्मा गांधी के साथ चर्चा शुरू की। सितंबर 1920 में कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में, महात्मा गांधी ने अन्य नेताओं को भी आश्वस्त किया कि खिलाफत आंदोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आंदोलन शुरू किया जाना चाहिए। यह आंदोलन जनवरी 1921 में समाप्त हुआ।

पूर्ण स्वराज की मांग

वर्ष 1929 को तत्कालीन भारत के लाहौर में रावी नदी के तट पर कांग्रेस ने रावी अधिवेशन का आयोजन किया था। इसी अधिवेशन में ब्रिटिश साम्राज्य में सामने पूर्ण स्वराज की मांग हुई थी। कांग्रेस की इस मांग के कारण पूरा ब्रिटिश राजतन्त्र हिल गया था।

सविनय अवज्ञा आंदोलन / दांडी मार्च

असहयोग आंदोलन समाप्त होने के बाद सन 1930 ई. में कांग्रेस की कार्यकारिणी ने महात्मा गाँधी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाने का अधिकार प्रदान किया। इस आंदोलन की शुरुआत गाँधी जी ने अंग्रेज़ों के द्वारा वसूले जा रहे नमक कर के खिलाफ दांडी मार्च निकाल के की थी। इसे नमक मार्च, दांडी सत्याग्रह आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। गाँधी जी ने 12 मार्च 1930 को सुबह साबरमती आश्रम से 78 अन्य लोगों के साथ मिल कर नमक कानून के खिलाफ मार्च शुरू किया और 06 अप्रैल 1930 को 390 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके दांडी पहुंचे। वहां गाँधी जी ने नमक बनाकर, नमक कानून का उलंघन किया और अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला। सविनय अवज्ञा आंदोलन पूरे एक साल तक चला और 1931 को गांधी-इर्विन के बीच हुए समझौते से खत्म हो गया।

आज़ाद हिन्द फौज का गठन

द्वितीय विश्व युद्ध में इंग्लैंड का पल्ला हल्का होता देख नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस का दामन छोड़ सन 1942 में “आज़ाद हिन्द फौज” का गठन किया था। यह एक सशस्त्र सेना थी। जिसने अपने गठन के एक साथ के अंदर ही ब्रिटिश सेना और ब्रिटिश शासन को अंदर तक हिलाकर रख दिया था। इस सेना के एक-एक सिपाही में देश को आज़ाद कराने और देश के लिए मर मिटने दोनों का साहस और मनोबल कूट-कूट के भरा था।

भारत छोड़ो आंदोलन

8 अगस्त 1942 को द्वितीय विश्व युद्ध के समय भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया गया था। यह भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करने के उद्देश्य से एक आंदोलन था। यह आंदोलन अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुंबई अधिवेशन में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विश्व प्रसिद्ध काकोरी की घटना के ठीक सत्रह साल बाद 7 अगस्त 1962 को गांधी जी के आह्वान पर पूरे देश में एक साथ इसकी शुरुआत हुई। यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत को तुरंत आजाद कराने के लिए एक सविनय अवज्ञा आंदोलन था। इस आंदोलन में क्रांतिकारियों के साथ-साथ पूरे देश की जनता ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। अंग्रेजी शासन को इस आंदोलन के प्रति काफ़ी सख्त रवैया अपनाया पड़ा फ़िर भी इस विद्रोह को दबाने में सरकार को साल भर से ज्यादा समय लग गया।

इन आंदोलनों के अतिरिक्त अन्य बहुत सारे आंदोलन देश में हुए थे जिनके परिणाम स्वरुप ही हमे ये बहुमूल्य आज़ादी प्राप्त हुई है। आपको हमारा यह आर्टिकल कैसा लगा हमे कमैंट्स के माध्यम से अवश्य बताएं।

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