होली का त्यौहार प्रतिवर्ष मार्च महीने (फाल्गुन) में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। होली का पर्व हिन्दू धर्म के प्रमुख त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भारत के साथ ही विदेशों में भी रह रहे भरतवंशियो द्वारा बड़े ही हर्षोल्लास के साथ सेलिब्रेट किया जाता है। स्कूलों, कॉलेजों, प्रमुख सरकारी संस्थानों में होली के लिए निबंध, भाषण एवं अन्य प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। हम इस पेज पर होली पर भाषण (Speech on Holi) प्रदान कर रहे हैं जिसको पढ़कर आप भाषण की तैयारी कर सकते हैं और भाषण लेखन की प्रतियोगिता में हिस्सा भी ले सकते हैं।

होली पर स्पीच

नमस्कार दोस्तों, मैं…. यहाँ उपस्थित सभी महानुभावों / लोगों / आगंतुकों / छात्रों एवं टीचर्स का अभिनन्दन करता हूँ। आज होली के इस पावन पर्व पर मैं अपने कुछ विचार रखने जा रहा हूँ जिसके लिए आप सभी का ध्यान अपनी ओर चाहूँगा।

दोस्तों होली का पर्व सनातन धर्म (हिन्दू) का एक पवित्र एवं सबसे प्रमुख त्यौहार माना जाता है। इस त्यौहार को प्रतिवर्ष हिंदी महीने के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है वहीं अंग्रेजी महीने के अनुसार मार्च महीने में मनाया जाता है। होली के पर्व को प्रमुख रूप से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग आपस में एक दूसरे को ढेरों प्रकार की मिठाइयाँ खिलाकर एक दूसरे को गले लगाकर शुभकामनाएँ देते हैं। कहते हैं होली के दिन दुश्मन भी एक दूसरे से दुश्मनी भुलाकर एक दूसरे को होली की शुभकामनाएँ देते हैं और दुश्मनी को आग की लपटों में जलाकर एक नयी शुरुआत करते हैं। दोस्तों यही तो खूबसूरती है हमारे अपने त्यौहार होली की जो सभी को एक धागे में पिरोने का काम करती है।

दोस्तों वैसे तो आप सबने अपने माता-पिता, टीचर्स या अपने दादा/दादी, नाना/नानी से होली के पीछे की कहानी को सुना ही होगा लेकिन फिर में मैं इस कहानी को बताने जा रहा हूँ की होली पर्व की शुरुआत कब से हुई थी। कहते हैं प्राचीन कल में हिरण्यकश्यप नामक एक राजा हुआ करता था जो अपने आप को स्वघोषित भगवान मानता था। राज्य की प्रजा में वह अपना भय बनाये रखने के लिए उन पर अत्याचार करता था और जो उसे भगवान नहीं मानता था और उसकी पूजा नहीं करता था उसको वो कठोर दंड प्रदान कर दंडित करता था। राजा हिरण्यकश्यप के एक पुत्र हुआ जिसका नाम प्रह्लाद था वह बचपन से ही भगवान विष्णु का सेवक था और उनकी पूजा अर्चना करता था लेकिन राजा को अपने बेटे की यह बात बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती थी। राजा ने अपने बेटे को मारने के लिए विभिन्न तरीके अपनाये लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से उनको कुछ नहीं हुआ। अंत में राजा ने अपने बेटे को मारने का काम अपनी दुष्ट बहन होलिका को दिया, होलिका को आग में न जलने का वरदान था। होलिका भक्त प्रह्लाद को लेकर जलती हुई आग में बैठ गयी लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका उस आग में भस्म हो गयी। तभी से प्रतिवर्ष इस त्यौहार को मनाया जा रहा है।

आज भी लोग लकड़ियों, गोबर के उपलों से बनायीं हुई आग के चारों ओर घूमकर उसमें अनाज के दानों को डालकर बड़े ही धूमधाम से इस पर्व को मनाते हैं। इसके साथ ही सब लोग अपने आराध्य भगवान को याद करते हैं और उनकी पूजा करते हैं और भगवान से आशीर्वाद मांगते हैं। इन सबके साथ ही लोग एक दूसरे को रंग-बिरंगे रंगों को एक दूसरे को लगाकर अपनी ख़ुशी का इजहार करते हैं।

दोस्तों अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि होली सच्चे अर्थों में भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, जिसके रंग अनेकता में एकता को दर्शाते हैं। लोग एक दूसरे को प्रेम-स्नेह की गुलाल लगाते हैं , सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी दिखाते हैं, एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम को दर्शाते हैं। इन शब्दों के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हैं।

आप सभी महानुभावों को होली की अनंत शुभकामनाएँ।

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